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प्रेम क्या है और हमारे जीवन में प्रेम का कितना महत्व है ?

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  जीवन में प्रेम का कितना महत्व है ये जानने से पहले थोड़ा हम प्रेम को समझने की कोशिश करते है कि प्रेम है क्या जो लोग प्रेम को ही जीवन का सार , तो प्रेम को ही किसी भी रिश्तों की नींव , तो प्रेम को ही जीवन की सच्ची साधना मानते है खैर मेरी समझ से प्रेम एक अनुभूति है जिसे अगर हम शब्दों में बयाँ करें तो     ·         प्रेम वो बंधन है जो हमें खुद से अलग नहीं होने देता  ·         प्रेम वो आदत है जिसके बिना हमारा जीना मुश्किल हो जाता है ·         प्रेम वो है जो अगर हो तो जीवन में रस ही रस हो और अगर ना हो तो जीवन       जैसे रस बिहीन हो ·         प्रेम वो है  जो पत्थर में भी प्राण फूंक दें ·         प्रेम वो है जिसका ना आदि है ना अंत है ·         प्रेम वो है जो हमारे मन को चंचल भी करती है और प्रेम वो है जो हमारे मन को शान्त भी करती है ·         प्रेम वो है जो एक दूसरे से जोड़ने और जोरे रखने की कला से परांगत है ·         प्रेम वो है जो चाह कर नहीं होता जो स्वयं हो जाये वो प्रेम है ·         प्रेम वो है जो हर प्रकार के भेद भाव से परे है ·         प्रेम वो है जो चितचोर है ·         और तो और हमारा

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें या प्रतियोगी परीक्षा में उतीर्ण होने के लिए क्या करना चाहिए ..

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  परीक्षा जिसका अर्थ ही होता है परखने का मापदंड जो किसी भी तरह का हो सकता है मौखिक हो सकता है , लिखित हो सकता है और वैकल्पिक हो सकता है या तीनों ही रूप में हो सकता है क्योंकि दिन प्रति दिन बढती बेरोजगारी दर के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं का स्तर भी काफी व्यापक हो गया है जिससे विद्यार्थियों में एक दूसरे से आगे निकलने जैसी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ने लगी है जिसके फलस्वरूप सफलता सिर्फ उन्हीं विद्यार्थियों को प्राप्त हो पाती है जो बेहतर से भी बेहतर है औसत विद्याथियों को तो असफलता के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता है इसीलिए   प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने को उत्सुक कुछ नये विद्यार्थियों के मन में या जो विद्यार्थी निरन्तर असफलता ही पा रहे है उनके मन में भी इस सवाल का निश्चित तौर पर आना तय है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें या प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने के लिए क्या करें ... तो आज इस ब्लॉग को लिखने का भी मकसद यही है कि हम कैसे अपने आप को आज के समय के हिसाब से होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अपना स्थान कैसे बनायें या कैसे सफलता प्राप्त करें ..   वैसे तो हम भविष्य में क्या करेंगे..? कि

क्या विकास के लिए परिवर्तन जरूरी है या जीवन में हो रहे बदलाव को हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ..

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  परिवर्तन हमारे किए कितना महत्वपूर्ण है या परिवर्तन को हम कितना सही समझते है ये जानने से पहले हम थोड़ा परिवर्तन के बारे में समझने की कोशिश करते है कि परिवर्तन क्या है और ये कितने प्रकार के होते है तो मेरी समझ से परिवर्तन हम उसे कह सकते है Ø जो हमें जीवन के प्रत्येक ठहराव के बाद हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित या बाध्य करता हो Ø जो हमें अपने जीवन में गतिशील रहने के बावजूद ठहरने या ठहराव के लिए प्रेरित या बाध्य करता हो और परिवर्तन के प्रकार के बारे में बात करें तो ये मुख्यत: दो प्रकार के हो सकते है एक दैविक और दूसरा मानव रचित ... Ø दैविक परिवर्तन के बारे में बस हम इतना कह सकते है कि जिस परिवर्तन के होने या ना होने पे किसी का भी जोर ना चल पाये वो दैविक परिवर्तन हो सकता है और Ø मानव रचित परिवर्तन के तो हम खुद गवाह है या हम खुद जन्मदाता है | क्योंकि जिस दुनियाँ को हम अभी अपनी खूली आँखों से देख रहे है ये   मानव द्वारा ही विकसित है ... आइये इसको और विस्तार पूर्वक समझने की कोशिश करते है       कहते है चाहे हम किसी भी पद पर हो किसी भी मुकाम पर हो किसी भी स्थिति में ह

हम अपनी निर्णय लेने की क्षमता का विकास कैसे करें ? या जीवन में सही क्या है और गलत क्या है इसका निर्णय कैसे करें ..

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  Ø कहते है हम कितना भी समझदार हो कितना भी ज्ञानी हो  लेकिन जब फैसला या निर्णय लेने की बारी आती है तो हम  सोच में पड़ जाते है कि क्या करें और क्या नहीं क्योंकि निर्णय गलत होने    के डर के साथ – साथ हमारे अंदर इसका भी डर बना रहता है कि हमारे फैसले पर या हमारी निर्णय पर कल को कोई अँगुली ना उठादे या कल को कोई ये ना कहने लगे   कि निर्णय ही गलत था इसीलिए हम कभी – कभी कोई निर्णय ही नहीं ले पाते है या समझ ही नहीं पाते है कि सही क्या है और गलत क्या है और असमर्थ होकर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते है और मौका को गँवा देते है लेकिन ऐसा करने से भी क्या हम बदनामी से या अपने आप को इस तरह के तोहमत से बचा पाते है कि भविष्य में क्या करेगा क्या नहीं इसका तो कुछ पता ही नहीं चलता क्योंकि ये तो ना हाँ बोलता है और ना ही ना क्या चुप्पी साध लेने से इसकी कमजोरी छिप जाएगी इत्यादि.. Ø निर्णय लेने में असर्मथता का ये कारण भी हो सकता है..   जो दूर की सोचने की शक्ति में कमी को दर्शाता है या अपने ही फैसले पर भरोसा ना होने जैसी विसंगतियों को परिभाषित करता है क्योंकि इंसान एक पग भी आगे तभी बढ़ाता है जब उसको पूर्ण विश्वास रहत

हम अपने जीवन में आगे कैसे बढ़े या हमे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए क्या करना चाहिए ?

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  कहते है जीवन में आगे बढ़ने का मन किसका नहीं करता है कौन नहीं चाहता है कि मैं भी अपनी जिन्दगी में एक ऐसा मुकाम हासिल करू जिससे मेरा भविष्य उज्जवल होने के साथ – साथ सुरक्षित भी हो लेकिन कितने लोग अपनी जिन्दगी में ऐसा मुकाम हासिल कर पाते है अगर हम इस विषय में सोचने की कोशिश करते है तो पाते है कि बस गीने चूने ही लोग अपने आप को सावित कर पाते है या अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसा कर पाते है जिसके कुछ लोग सपने ही देखते है लेकिन हासिल नहीं कर पाते है ऐसा क्यूँ होता है क्या वो लोग गुणी नहीं होते है जो जिन्दगी बनाने की रेस में पीछे छुट जाते है क्या उनके अंदर वो ताकत वो हूनर वो हौसला नहीं होता है जिसके कारण उन्हें बार – बार अपनी जिन्दगी में हार का सामना करना पड़ता है क्या है इसके पीछे का रहस्य या क्या है इसके पीछे की वजह .... इत्यादि   तो आइये अब सारे सवालों के जबाव को ढूंढने की कोशिश   करते है.. ... किसी भी वस्तु को या किसी भी स्थिति को देखने और परखने के लिए जो नजर हमारे पास है क्या वो नकारत्मक या सकारत्मक है सबसे पहले तो ये जानने की कोशिश करनी चाहिए .. क्योंकि हमारी उत्थान की नींव यही रखती है और