प्रेम क्या है और हमारे जीवन में प्रेम का कितना महत्व है ?
जीवन में प्रेम का कितना महत्व है ये
जानने से पहले थोड़ा हम प्रेम को समझने की कोशिश करते है कि प्रेम है
क्या जो लोग प्रेम को ही जीवन का सार , तो प्रेम को ही किसी भी रिश्तों की नींव ,
तो प्रेम को ही जीवन की सच्ची साधना मानते है
खैर मेरी समझ से प्रेम एक अनुभूति है जिसे अगर
हम शब्दों में बयाँ करें तो
· प्रेम वो आदत है जिसके बिना हमारा जीना मुश्किल हो जाता है
· प्रेम वो है जो अगर हो तो जीवन में रस ही रस हो और अगर ना हो तो जीवन जैसे रस बिहीन हो
· प्रेम वो है जो पत्थर में भी प्राण फूंक दें
· प्रेम वो है जिसका ना आदि है ना अंत है
· प्रेम वो है जो हमारे मन को चंचल भी करती है और प्रेम वो है जो हमारे मन को शान्त भी करती है
· प्रेम वो है जो एक दूसरे से जोड़ने और जोरे रखने की कला से परांगत है
· प्रेम वो है जो चाह कर नहीं होता जो स्वयं हो जाये वो प्रेम है
· प्रेम वो है जो हर प्रकार के भेद भाव से परे है
· प्रेम वो है जो चितचोर है
· और तो और हमारा जीवन भी प्रेम है |
प्रेम से रहित कुछ नहीं है क्योंकि प्रेम है
तो हम है और हम है तो प्रेम है ..
प्रेम को तो हमने यथा संभव अपनी कोशिश से
जहाँ तक हम प्रेम को समझ सकते थे समझ लिया की प्रेम क्या है आइये अब हमारे जीवन
में प्रेम का कितना महत्व है या हमारे जीवन के लिए प्रेम कितना महत्वपूर्ण है समझने
की भरपूर कोशिश करते है ...
कहते है प्रेम
के अनेकों रंग है और प्रेम अपने हर रंग में उतना ही प्रभावशाली है जितना किसी एक
रंग में ! चाहे हम प्रेम के किसी भी रंग को देखे
जैसे भाई से
भाई के प्रेम का रंग , माता से अपनी संतानों के प्रेम का रंग ,प्रेमिका से किसी प्रेमी के प्रेम का रंग या
किसी भी रिश्तों में प्रेम का रंग ..
सबका सार एक
ही है बस रंग अलग – अलग है लेकिन प्रेम तो वही है |
प्रेम के और
रंगों की बात करें तो लक्ष्मण और उर्मिला के प्रेम के रंग क्या अदभुत नहीं है राधा
और कृष्ण के प्रेम के रंग क्या प्रेम की नई परिभाषा नहीं गढ़ते है सीता और राम का
प्रेम भी क्या प्रेम की चरम सीमा नहीं है कैकयी और राम के प्रेम की कोई दुहाई तो
नहीं देता लेकिन उसमें भी जो प्रेम कैकयी के राम के प्रति जब विलाप रूप में झलकता है
क्या वो प्रेम अविश्वसनीय नहीं है
खैर प्रेम का रंग सिर्फ रिश्तों तक ही
सिमित नहीं है हम जिस समाज में रहते है उस समाज के निर्माण में भी प्रेम की अहम भूमिका
है आइये इसको भी थोड़ा समझने की कोशिश करते है ..
मनुष्य तो एक समाजिक प्राणी है और समाजिक होने
का अर्थ ही है आपसी मेल और किसी भी प्रकार का मेल क्या प्रेम रहित हो सकता है नहीं
ना इसीलिए मनुष्य का समाजिक प्राणी होने में भी प्रेम का ही हाथ है ...
जरा सोचिए अगर प्रेम नहीं होता तो क्या
होता ...
· क्या किसी से किसी का लगाव होता
· क्या किसी रिश्तों की मर्यादा रहती
· क्या अहिंसा के रास्ते को ही हम अपने जीवन के लिए सर्वोत्तम पाते
· क्या किसी की भावना का हम कद्र कर पाते
· क्या सामज का निर्माण हो पाता , क्या हमारे भीतर सदभावना का सृजन हो पाता
· क्या हमारा चित कभी किसी के लिए व्यग्र होता ...
नहीं हो पाता क्योंकि प्रेम रहित होना पत्थर
होने जैसा है इसीलिए भी प्रेम हमारे और हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण है
निष्कर्ष
प्रेम का
हम कितना भी पाठ पढले ,प्रेम को हम कितना भी समझने की कोशिश करले लेकिन सम्पूर्ण
प्रेम का साक्षात्कार नहीं कर सकते है क्योंकि प्रेम सोच कर नहीं किया जा सकता है और
अगर करते भी है तो वो प्रेम , प्रेम नहीं एक प्रकार का हमारे द्वारा रचित असल
प्रेम के स्थान पर विचार रूपी प्रेम ही होगा क्योंकि प्रेम तो आप रूपी हमारे हृदय
में उत्पन्न होता है वो चाहे किसी के लिए भी हो और वही प्रेम सर्वोत्तम है और
हमारे जीवन पर उतना ही प्रभाव प्रेम का है जितना किसी माँ का अपने बालक पर , किसी
प्रेमिका के अपने प्रेमी पर , किसी लाचार को उसके मददगार पर , किसी समाज को उसके
निर्माण पर ...
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