हम अपनी निर्णय लेने की क्षमता का विकास कैसे करें ? या जीवन में सही क्या है और गलत क्या है इसका निर्णय कैसे करें ..

 



Ø कहते है हम कितना भी समझदार हो कितना भी ज्ञानी हो

 लेकिन जब फैसला या निर्णय लेने की बारी आती है तो हम

 सोच में पड़ जाते है कि क्या करें और क्या नहीं क्योंकि निर्णय गलत होने

   के डर के साथ – साथ हमारे अंदर इसका भी डर बना रहता है कि हमारे फैसले पर या हमारी निर्णय पर कल को कोई अँगुली ना उठादे या कल को कोई ये ना कहने लगे  कि निर्णय ही गलत था इसीलिए हम कभी – कभी कोई निर्णय ही नहीं ले पाते है या समझ ही नहीं पाते है कि सही क्या है और गलत क्या है और असमर्थ होकर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते है और मौका को गँवा देते है लेकिन ऐसा करने से भी क्या हम बदनामी से या अपने आप को इस तरह के तोहमत से बचा पाते है कि भविष्य में क्या करेगा क्या नहीं इसका तो कुछ पता ही नहीं चलता क्योंकि ये तो ना हाँ बोलता है और ना ही ना क्या चुप्पी साध लेने से इसकी कमजोरी छिप जाएगी इत्यादि..

Ø निर्णय लेने में असर्मथता का ये कारण भी हो सकता है..

  जो दूर की सोचने की शक्ति में कमी को दर्शाता है या अपने ही फैसले पर भरोसा ना होने जैसी विसंगतियों को परिभाषित करता है क्योंकि इंसान एक पग भी आगे तभी बढ़ाता है जब उसको पूर्ण विश्वास रहता है कि आगे जाने से मेरी मुश्किल कम हो जाएगी या हल हो जाएगी या मै जो चाहता हूँ उसे पा लूँगा इत्यादि




Ø निर्णय लेने में असर्मथता का ये कारण भी हो सकता है.. 

  जो हमारी उस क्षेत्र के बारे में ठीक-ठाक ज्ञान की कमियों या जानकारी के अभाव को दर्शाता है जिस  क्षेत्र के बारे में हमको कुछ बताना है या निर्णय लेना है कि ये ठीक है या नहीं .

जैसे किसी गीत को सुनकर हम झट से कह देते है ये तो बहुत ही अच्छा है या बहुत ही बाहियात है जबकि संगीत के बारे में हमको कुछ नहीं पता बस हम गीत को सुनकर ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते है |  



खैर निर्णय लेने में असर्मथता को दूर करने के लिए ..

हमें अपने मत को किसी के सामने वेबाक तरीके से रखने का प्रयत्न करना चाहिए कभी भी झूठ – मूठ के भँवर जाल में नहीं फँसना चाहिए कि निर्णय गलत होगा तो क्या होगा लोग क्या कहेंगे इत्यादि क्योंकि मेरा मत है कि जब तक हम गलती नहीं करेंगे तब तक सीखेंगे कैसे क्योंकि अपनी गलती से हम जीतना सीखते है उतना किसी के बताने से भी नहीं सीखते है और रहा सवाल ज्ञान की कमी का तो इस कमी को तो धीरे – धीरे ही दूर किया जा सकता है अगर आप इसके लिए किसी की मदद लेना चाहे तो ले सकते है



निष्कर्ष

किसी के भी जीवन में विषम से विषम परिस्थिति पैदा होने के पीछे कुछ ना कुछ अच्छा ही कारण होता है क्योंकि एक तरह से विषम परिस्थिति भी हमें शिक्षा ही देती है और एक गुरु के रूप में हमारी उन्नति के लिए हमारे जीवन में उत्पन्न होती है इसीलिए परिस्थिति चाहे कोई भी हो कभी घबराना नहीं चाहिए और उससे निकलने के लिए प्रयत्न करना चाहिए उससे घबराने या डरने के बजाए और हमारी निर्णय लेने की क्षमता ही ही एक ऐसी शक्ति हमारे पास है जिससे हम किसी भी स्थिति से निकल सकते है या अपने जीवन में कुछ पा सकते है इसीलिए खुद पर भरोसा रखना चाहिए और अपने मनोबल को हमेशा बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए जिससे हमारे अंदर कुछ करने की या कुछ पाने की शक्ति उत्पन्न होगी उसके बाद ही निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो सकेगा |    

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