हमारे जन्म के साथ ही हमारे भीतर कर्म करने की शक्ति का विकास होने लगता है और इसी कर्म करने की शक्ति से हम अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की कोशिश करते है या जीते है | जन्म से लेकर मृत्यु से पूर्व तक किसी भी व्यक्ति के कर्म करने की जो शक्ति होती है बरकरार रहती है और इसी कर्म करने की शक्ति से हम अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की कोशिश करते है और जीते है | लेकिन प्रश्न उठता है की किसी भी व्यक्ति के भीतर कर्म करने की शक्ति का सृजन कैसे होता है जो चाह कर भी मरते दम तक छोड़े ना छूटता है .. ? हम जिस भी समाज में रहते है या जिस भी वातावरण में रहते है हमारे व्यक्तित्व का निर्माण भी उसी तरह का होता है जो हमारे भीतर कुछ बनने की , कुछ नया करने की या कुछ ऐसा प्राप्त करने की अभिलाषा को जन्म देती है जो आज तक किसी ने प्राप्त नहीं किया है या किसी और ने ये कर लिया लेकिन हमने अब तक नहीं किया है और यही अभिलाषा हमारे भीतर जो कर्म करने की शक्ति है उसको गति प्रदान करती है और हमारी समस्त उर्जा को हमारी अभिलाषा की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है | हमे अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए हमारे भीतर जब