जीवन में भाग्य और दुर्भाग्य का प्रवेश कैसे होता है ..? How does luck and misfortune enter life..?

 


 हमारे जन्म के साथ ही हमारे भीतर कर्म करने की शक्ति का विकास होने लगता है और इसी कर्म करने की शक्ति से हम अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की कोशिश करते है या जीते है |

जन्म से लेकर मृत्यु से पूर्व तक किसी भी व्यक्ति के कर्म करने की जो शक्ति होती है बरकरार रहती है और इसी कर्म करने की शक्ति से हम अपने जीवन को अपने तरीके से जीने की कोशिश करते है और जीते है |

लेकिन प्रश्न उठता है की किसी भी व्यक्ति के भीतर कर्म करने की शक्ति

का सृजन कैसे होता है जो चाह कर भी मरते दम तक छोड़े ना छूटता है ..?

 


हम जिस भी समाज में रहते है या जिस भी वातावरण में रहते है हमारे व्यक्तित्व का निर्माण भी उसी तरह का होता है जो हमारे भीतर कुछ बनने की, कुछ नया करने की या कुछ ऐसा प्राप्त करने की अभिलाषा को जन्म देती है जो आज तक किसी ने प्राप्त नहीं किया है या किसी और ने ये कर लिया लेकिन हमने अब तक नहीं किया है और यही अभिलाषा हमारे भीतर जो कर्म करने की शक्ति है उसको गति प्रदान करती है और हमारी समस्त उर्जा को हमारी अभिलाषा की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है |

हमे अपनी अभिलाषा की पूर्ति के लिए हमारे भीतर जब कर्म करने की शक्ति

का सृजन हो जाता है तब फिर क्यों हम अपनी सफलता या असफलता का

श्रेय भाग्य या दुर्भाग्य को देते है..! जबकि कर्म ही प्रधान है सर्वोपरी है ...?

हम जो कुछ भी अपनी जिन्दगी में पाना चाहते है उसकी दिशा में कुछ समय तक तो अपनी समस्त उर्जाओं को झोक देते है लेकिन कुछ समय बाद स्वयं के द्वारा तय मंजिल की दिशा में इसी उधेरबुन के साथ आगे बढ़ने लगते है की हम जो चाहते है या हमारी जो अभिलाषा है उसकी पूर्ति कब होगी या अब तक क्यूँ नहीं हुई, मेरी समझ से यही एक कारण है जो हमारे जीवन में भाग्य और दुर्भाग्य को पनपने का मौका देती है और हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि हम जो अपने जीवन में पाना चाहते है उसकी पूर्ति होने में या नहीं होने में भाग्य और दुर्भाग्य की अहम भूमिका होती है | और हम जो अपने भीतर इस तरह के सोच को पनप कर फलने फूलने का मौका देते है यहीं  हम सबसे बड़ी गलती कर बैठते है और अपने आप को स्वयं के द्वारा तय मंजिल से कोसो दूर धकेल देते है और सारा का सारा दोष भाग्य और दुर्भाग्य पर मढ़ देते है जबकि हम स्वयं जाने अनजाने रूप से इसके जिम्मेदार होते है |

तो ऐसा क्या करें जिससे हम भाग्य और दुर्भाग्य को परे रखकर

अपनी उन्नति की दिशा में बिना थके बिना हारे आगे बढ़े ....

हम जब अपनी लाख कोशिशों के बाद भी सफलता का स्वाद नहीं चखते है तब स्वाभाविक है कि हम अपनी राह से भटक जायें या टूट कर बिखर जायें लेकिन हमको भटकना नहीं है , हमको टूटना नहीं है , हमको तो सफल होना है इसीलिए हमें अपनी असफलताओं से सीख लेकर या हमसे चूक कहाँ हो रही है इसका आकलन करके आगे बढने का प्रयत्न करना चाहिए ...अगर हम ऐसा करने में सफल हो जाते है तो हम भाग्य और दुर्भाग्य जैसी मन:स्थिति से खुद को निकालने में मेरी समझ से निश्चित तौर पर सफल हो पायेंगे ...|

क्योंकि ....






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