#birsamuda#बिरसा मुंडा #‘मेरी प्रेरणा- जनजातीय नायक बिरसा मुंडा’
‘मेरी प्रेरणा- जनजातीय नायक बिरसा मुंडा’
प्रस्तावना
“कुछ लोग जिन्दा होकर भी जिन्दा नहीं रहते !
वहीं कुछ लोग मर कर भी नहीं मरते, सदा जिन्दा
रहते है”,
“जैसे हमारे भगवान बिरसा मुंडा जी”|
जिन्होंने कभी अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुए अपने
कर्तव्य से मुँह नहीं मोड़ा, जिन्होंने कभी अंग्रेजों के द्वारा दी जाने वाली
यातनाओं के डर से , घोड़ पीड़ा के भय से सच्चाई का पथ नहीं छोड़ा, कभी दबे – कुचले लोगों की मदद करने से, देश की भक्ति से या देश भक्तों का साथ देने से
कभी भी मुँह नहीं मोड़ा ,
अपने कर्तव्य के प्रति इतना दृढनिश्चयी तो सिर्फ
और सिर्फ भगवान ही हो सकते है कोई दूसरा नहीं इसीलिए हमारे भगवान बिरसा मुंडा जी
ने स्वयं को धरती आबा भी कहा था अर्थात “धरती का भगवान” |
जन्म
हमारे भगवान बिरसा मुंडा जी का जन्म 18 नवम्बर
1875 को उलिहातु गाँव के एक बटाईदार किसान परिवार में हुआ था, जिनके पिता का नाम
सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हातू था| भगवान बिरसा मुंडा अपने बाल्यावस्था से
ही कर्मठ ,जोशीले और अन्नाय के खिलाफ आवाज उठाने वाले ओज और तेज से परिपूर्ण थे |
शिक्षादीक्षा
हमारे भगवान बिरसा मुंडा की शुरूआती शिक्षा दीक्षा
उलिहातू गाँव में ही उनके गुरु जयपाल नाग द्वारा सम्पन्न हुई थी, लेकिन उच्च
शिक्षा के लिए उन्हें जर्मन मिशनरी स्कूल तक का सफर तय करना करना था, जिसके लिए
उन्हें अपना धर्म भी बदलना पड़ा, और वो इसाई होकर एक नये नाम बिरसा डेविड हो गये |
जो की उस दौड़ के लिए आम बात थी, क्योंकि जिस धर्म का शाशक होता था, उस धर्म के
बच्चों के शिक्षा दीक्षा में किसी भी प्रकार का कोई भी व्यवधान नहीं आता था |
भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन के उद्देश्य
भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य
था गैर आदिवासी जमींदार द्वारा जबरन कब्जायी गई आदिवासियों की कर मुक्त जमीन को
मुक्त कराना |
चूँकि अंग्रेजी हुकूमत से गुहार लगा – लगा कर
आदिवासी थक चूके थे, इसीलिए आदिवासियों के पास अंग्रेजी हुकुमत से विद्रोह करना ही
एक अंतिम मार्ग शेष था |
भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन की दशा और दिशा
“जो स्थति को समझ सकता है वहीं उस स्थति से बाहर
निकलने के मार्ग भी ढूढ़ सकता है” इसीलिए भगवान बिरसा मुंडा ने स्वयं को ईश्वर का भेजा हुआ वो दूत कहा था “जो
हर अन्याय को जड़ से खत्म करने के योग्य है”|
भगवान बिरसा मुंडा द्वारा स्वयं को भगवान या
भगवान का भेजा हुआ दूत घोषित करने के बाद, दूर- दूर से लोग उन्हें देखने और
अपनी-अपनी समस्या से रूबरू कराने के लिए एकत्रित होने लगे|
जिसका परिणाम यह हुआ की जो लोग अन्याय को अपनी
नियति मान कर उसको सहर्ष स्वीकार करने के लिए अपने आप को बाध्य समझते थे वह भी
अन्याय के खिलाफ बोलने व लड़ने के प्रति प्रतिबद्ध हो गये |
भगवान बिरसा मुंडा के प्रमुख आंदोलन
वैसे तो जब अन्याय के खिलाफ बोलने की या लड़ने की
प्रवृति का मन मस्तिस्क में जन्म हो जाता है, उसके बाद तो छोटी से छोटी बात
भी एक प्रकार से आंदोलन का ही रूप होता है
लेकिन कुछ ऐसे आंदोलन
होते है, जिसे भुलाना मुमकिन ही नहीं होता है या
जिसे हम कभी भूल ही नहीं सकते है |
जैसे – मुंडा विद्रोह
मुंडा विद्रोह एक ऐसा विद्रोह था, जिसे विस्तृत
जनजातीय विद्रोह भी कहा जाता है |यह एक ऐसा विद्रोह था, जो ठहरे हुए पानी में
भूचाल की तरह या घोर हलचल की तरह था, इसीलिए इस विद्रोह को उलगुलान भी कहते है जो
की 1800 ई० से 1900 ई० के बीच चलीं,जिसमें हजारों आदिवासी शहीद हुए और जेल चले गये
|
भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु
9 जून 1900 को हमारे भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु
हुई लेकिन
भगवान बिरसा मुंडा की मृत्यु का कारण भी एक रहस्य
है क्योंकि कहीं पढ़ने को मिलता है की जेल में ही अंग्रेजी हुकुमत द्वारा भगवान
बिरसा मुंडा की मृत्यु जहर देने से हो गई,
तो कहीं भगवान बिरसा मुंडा के मौत का कारण हैजा
के रूप में पढ़ने को मिलता है |
खैर ,
“देश भक्त मरा नहीं करते, वो तो सदा जिन्दा रहते
है |
बिरसा
मुंडा तू कल भी जिन्दा था, तू आज भी जिन्दा है और कल भी जिन्दा रहेगा |”
निष्कर्ष
हम प्राचीनकाल से अच्छे विचारों का अनुसरण करते
आये है| जिसके परिणाम स्वरूप हम पीढ़ी दर पीढ़ी बौद्धिक रूप से समृद्ध होते आये है,
और आगे भी होते रहेंगे| क्योंकि हमारे देश की मिट्टी से लेकर आवो हवा में, उन अमर
शहीदों की ,उन अमर ग्रन्थों की, अमर गाथा रची बसी है, जो हमारा मार्गदर्शन भी करती
है, और भटकने की अवस्था में मार्ग रोकने का भी काम करती है |
‘मेरी प्रेरणा-
जनजातीय नायक बिरसा मुंडा’
भगवान बिरसा मुंडा का जीवन देश के लिए ,देश के
हितों के लिए समर्पित जीवन था| उनके
जीवन का समर्पण भाव ही, “हमारी प्रेरणा है”| जो हमें लाख कठिनाइयों के बाद भी अपनी
उन्नति ,अपने देश की उन्नति के लिए निरंतर कोशिश करने से पीछे नहीं हटने देता |
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