धरती से मीठे पानी का स्तर धीरे – धीरे कम क्यों हो रहा है ? Why is the level of fresh water gradually decreasing from the earth?


         

  “एक घूंट को प्यासी धरती , एक घूंट को प्यासे हम

  रह जायेंगे अगर  करेंगे, यूँ  ही  बर्बाद  पानी  हम”


वैसे तो पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, फिर भी दिन प्रति दिन पानी की

बढ़ती आवश्यकताओं और पानी की कम होती उपलब्धताओं की समस्याओं के इर्द गिर्द ही

जीवन चक्र घूमता नजर आता है|

और ऐसा होना भी स्वभाविक ही है क्योंकि पृथ्वी का तीन चौथाई भाग जो जल से घिरा

हुआ है या पृथ्वी पर जितना भी पानी उपलब्ध है उसका 97% भाग समुंद्र में खड़े पानी

के रूप में है और शेष में से भी  2.5 प्रतिशत भाग वर्फ के रूप में या उनसे निकलने

वाली नदियों के रूप में है अब मात्र .5 प्रतिशत भाग ही मीठे पानी के रूप में उपलब्ध है

,जिसे देखते हुए आसानी से ये अंदाजा लगाया जा सकता है की भविष्य में पीने योग्य

पानी की घोर किल्लत होने वाली है|

 

मीठे पानी के प्रमुख श्रोत

नदी , झरना, नहर, कुआँ , भूमिगत जल इत्यादी जो मीठे पानी के प्रमुख एवं स्थायी श्रोत

है जबकि अस्थाई श्रोत वर्षा का पानी है जो की अत्यधिक मीठे पानी का श्रोत है जिसे

यदि अगर हम संचय करना सीख लें तो पानी की समस्या से कुछ हद तक निजात पाया

जा सकता है इसके लिए भारत सरकार द्वारा भी एक अभियान चलाया गया है जिसका

नाम है ‘कैंच द रेन’ जो की 30 नबम्बर 2022 तक चलेगी, भू टैगिंग के माध्यम से

इसपर नजर व इसके बारे में जानकारी इकठ्ठा की जाएगी |

 मीठे पानी का उपयोग या उपभोग

मीठे पानी का उपयोग या उपभोग हम अपने नित्य कर्म से लेकर नहाने – धोने ,खाने -

पीने या अपने दैनिक कार्य के लिए तो करते ही है साथ ही अपने खेतों को सिंचित 

या अपने फसलों को सिंचित करने आदि के लिए भी करते है|


 “जीवन को यदि बचाना है तो व्यर्थ पानी नहीं बहाना है

  नदी, नहर, कुआँ और झरना में, गंदगी नहीं फैलाना है “

मीठे पानी या पीने योग्य पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी

मीठे पानी या पीने योग्य पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी खेतों को सिंचित करते समय या

फसलों को सिंचित करने के समय देखी जा सकती है

क्योंकि सिचाई करते समय या तो आवश्यकता से अधिक पानी खेतों में भर दिया जाता है

या अपने फसलों की सिंचाई एक या दो बार करने की बजाए तीन या चार बार किया

जाता है, जो की फसल के लिए भी नुकसान देह सवित हो सकती है और पानी का ऐसा

दुरुपयोग, जल संकट भी भविष्य में पैदा कर सकता है |

 

मीठे पानी या पीने योग्य पानी की बर्बादी को रोकने का प्रबंध

 

   “एक - एक बूंद की समझ के कीमत, पानी को बहाना है

   संचित करके मेघ का पानी, सिंचाई के काम  में लाना है”

 

हम सिंचाई के उत्तम तकनीक जैसे ड्रिप सिंचाई पद्धति या फव्वारा सिंचाई पद्धति को अपना

सकते है जिसमें पानी का दुरूपयोग ना के बराबर होता है या जरूरत के हिसाब से होता है

क्योंकि ड्रिप सिंचाई पद्धति में जहाँ पानी को बूंद – बूंद करके पौधों की जड़ में लगाया

जाता है वहीं फव्वारा सिंचाई पद्धति में पानी का हवा में छिड़काव किया जाता है सिंचाई

की इस पद्धति को कृतिम वर्षा पद्धति भी कह सकते है |

 

निष्कर्ष

कहा जाता है की जितनी बड़ी चादर हो पैर उतने ही फैलाने चाहिए या आमदनी से अधिक

खर्च माली हालत के लिए नुकसानदेह होती है ऐसे बहुत सारे उदाहरण है जिनकों यदि हम

अपने जीवन में उतारें तो निश्चित तौर पर व्यवस्थित तरीकें से अपने जीवन को जीने

योग्य बना सकते है, लेकिन फिर भी हम जान – बुझकर या अपनी आँखें मूंदकर पानी का

दरुपयोग करने में या आवश्यकता से अधिक उपयोग या उपभोग करने में अपनी समस्त

उर्जा का व्यर्थ ही हनन करते है, और भविष्य में पानी की होने वाली किल्लत रूपी खाई

में खुद को धकेलने का निरंतर प्रयास करते है और वैसे भी कहा गया जरूरत से ज्यादा

किसी भी चीज का उपयोग करना हानिकारक ही होता है

वर्तमान समय में ही पानी का कहीं मोल नहीं है तो कहीं पानी बिना मोल नहीं है तो कहीं

पानी अनमोल है या यूँ कहे पैसे खर्च करने के बाद भी हमें जितनी पानी की आवश्यकता

होती है नहीं मिलता है| 

  


   "जल ही जीवन है, इसीलिए जल की रक्षा करना, 

       अपने जीवन की रक्षा करने के बराबर है, 

       जो करना चाहिए,

       क्योंकि, जितना हम परिस्थिति से सीखते है, 

       किसी और चीज से नहीं सीखते" |   

           

            

          


         



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