क्या मानव जीवन ही श्रेष्ठ जीवन या अनमोल जीवन है ! और अगर है ! तो क्यों ? kya manav jivn hi shreshth jivan ya anmol jivan hai or agar hai to kyon ?

                      

वैसे तो जीवन ही अपने आप में अनमोल होता है

·        जो जीवित और मृत में भेद स्थापित करता है |

·        जो श्रृष्टि में अपने आस्तित्व को स्थापित होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है|

·        जो प्रकृति की सृजन क्षमता को भी बखूबी उजागर करता है |

·        जो श्रृष्टि को संतुलित बनाने में सहायक की भूमिका निभाता है इत्यादि |

अब चाहे वो छोटे से छोटा जीव हो या बड़े से बड़ा जानवर या कोई और जिसके बारे में हमें अभी भी पता नहीं है  या मनुष्य , सबमें जीवन है और सब जी रहे है और सबको समान अधिकार है इस सम्पूर्ण श्रृष्टि में साँसे लेने का लेकिन जब श्रेष्ठता की बात आती है तो हम सोचने लग जाते है की श्रेष्ठता का पैमाना क्या होना चाहिए तो मेरी समझ से श्रेष्ठता का पैमाना तो यही होना चाहिए की कोई जीव अपने जीवन को कितना सुंदर बनाता है ,कितना दूसरों के लिए उपयोगी होता है इत्यादि प्रकार के उत्पन्न तर्कों से हम महसूस करते है की इस सम्पूर्ण सृष्टि में मानव जीवन ही सर्वश्रेष्ठ जीवन है क्योंकि ऐसे और भी तर्क है जो मानव जीवन को ही श्रेष्ठ जीवन मानने के लिए बाध्य करती है जैसे -

           


 

·     मानव जीवन ही एक ऐसा जीवन है जिसमें बौद्धिक क्षमता होती है जिस बौद्धिक क्षमता की    मदद से वो वस्तुस्थिति को समझ सकता है और वस्तुस्थिति के मुताबिक कार्य कर सकता है  

·     मानव जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है क्योंकि मानव के पास अपने ज्ञान का विस्तार करने के लिए जागृत मस्तिष्क होता है जो धीरे – धीरे मानव की सोच को इस काविल बनाने में मदद करता है कि उचित या अनुचित में भेद करना सीखने लगे या सीख जाए |


  

·       मानव जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है क्योंकि मानव जीवन के पास भाषा है लिपि है अपनी बातों को किसी के समक्ष प्रगट करने के लिए या किसी दूसरे की बातों को सुनकर या पढ़कर समझने के लिए या अपने इतिहास को अपनी अगली पीढ़ी तक सम्भाल कर रखने के लिए 

·     मानव जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है क्योंकि मानव का जीवन खुद मानव पर ही निर्भर करता है ये दुसरे पर निर्भर नहीं रहता है क्योंकि मानव अपने जीवन को बचाने के लिए या संगठित करने के लिए जो आवश्यक चीजों को महसूस करता है ( जैसे अन्न , जल , वस्त्र ,गृह ,सवारी) वो उसका बन्दोबस्त या उसकी उगाही अपनी प्रतिभा या अपने कौशल से स्वयं करता है दूसरों पर आश्रित नहीं रहता है |   

·       मानव जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है जो रोज नये – नये आविष्कार कर सकता है, श्रृष्टि की बनाबट को समझने की कोशिश कर सकता है और जरूरत पड़ने पर बचाव के लिए आगे भी आ सकता है | इत्यादि

 


निष्कर्ष

सिर्फ जीवित होना ही प्रत्येक जीवन की श्रेष्ठता का सूचक नहीं हो सकता क्योंकि प्रत्येक जीवन में कुछ ना कुछ ऐसे गुण होते है जो एक दूसरे से एक दुसरे को भिन्न करते है या एक दूसरे को एक दूसरे से श्रेष्ठ करते है और इसी भिन्नता या श्रेष्ठता का प्रमाण है कि मानव जीवन ही प्रत्येक जीवन से भिन्न या श्रेष्ठ नजर आता है |

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

#प्रारम्भिक शिक्षा पर मातृभाषा का प्रभाव एक दृष्टि में | # prarmbhik shiksha pr matribhasha ka prbhav ek drishti men | # The impact of mother tongue on elementary education at a glance.

#What is G20 and why did the member countries feel the need for it?

#मिलेट्स वर्ष 2023, एक कदम स्वस्थ्य जीवन की ओर | #Millets year 2023, a step towards healthy life.