जज्बात शून्य होने का क्या तात्पर्य है और इसके क्या कारण हो सकते है ?
मनुष्य एक समाजिक प्राणी है और समाजिक होने का अर्थ ही होता है एक दूसरे के काम
आना , एक दूसरे से मिल कर रहना , किसी भी तरह के भेद भाव को खुद से पड़े रख
कर सोचना , किसी के दुख में जहाँ शामिल होकर ढांढस बंधाना , वहीं किसी के सुख
में शामिल होकर उसके सुख में और चार चाँद लगाना , किसी रोते को हँसाना , किसी के
द्वारा मदद माँगने पर जितना हो सके उतना मदद के लिए आगे आना इत्यादि .....
जरा सोचिये अगर हमारे अंदर ऐसी भावनाओं का अंत हो जाये
तो क्या होगा .........
कोई किसी की मदद के लिए आगे नहीं आयेगा , किसी से किसी
को कोई मतलब नहीं होगा , खुद तक ही सिमित होने जैसी प्रवृति का जन्म होने लगेगा ..
आपस में ही बैर जैसी स्थति उत्पन्न होने लगेगी इत्यादि
क्या जीवन की ऐसी स्थिति हमारे अपने जीवन के लिए या समाज
के लिए किसी भी दृष्टि से एक अच्छी स्थिति होगी ..! नहीं ना क्योंकि मनुष्य एक
समाजिक प्राणी है और मेरी समझ से जिसका समाज के बिना पतन निश्चित है |
खैर जज्बात शून्य होने का तात्पर्य है कि हमारे भीतर जो
भावनाएँ उत्पन्न होती है उसका जड़ हो जाना अर्थात किसी के भी प्रति हमारे भीतर मोह
माया का उत्पन्न ना होना या किसी वस्तु से या किसी परचित – अपरचित से लगाव ना होना
इत्यादि ..
अगर इसके पीछे के कारण की तरफ हम सोचने की कोशिश करते है
तो पाते है कि..
हमारे जीवन चरित्र को उज्जवल बनाने में एक
मत से परिस्थिति की सबसे बड़ी भूमिका होती है जो हमें जीवन
जीने की कला भी सिखाती है और ना सीखने पर दुख या हानि रूपी दंड देकर सीखने के लिए
मजबूर भी करती है लेकिन जब हम फिर भी नहीं सीखते है तब हमारी स्थिति दिन प्रति दिन
बद से बदतर होती जाती है और हमारे भीतर नकारत्मक उर्जा उत्पन्न होने लगती है जो
हमें व्यथित करने लगती है और जीवन की यही स्थिति कुछ दिनों के बाद हमारे जज्बात को
शून्य कर देती है या यूँ कहे हमारे दिल को पत्थर कर देती है
जबकि दूसरे मत से किसी सदमे के कारण भी या दिल
टूटने या दिल में किसी भी प्रकार की चिन्ता घर कर लेने से भी हमारे भीतर नकारत्मक
उर्जा उत्पन्न होने लगती है जो हमें व्यथित करने लगती है और जीवन की यही स्थिति
कुछ दिनों के बाद हमारे जज्बात को शून्य कर देती है या यूँ कहे हमारे दिल को पत्थर
कर देती है
तीसरे मत से जब हमारे द्वारा लाख कोशिशे
करने के बाद भी जो हम चाहते है अगर हम वो नहीं प्राप्त कर पाते है
तो हमारे भीतर नकारत्मक उर्जा
उत्पन्न होने लगती है जो हमें व्यथित करने लगती है और जीवन की यही स्थिति कुछ
दिनों के बाद हमारे जज्बात को शून्य कर देती है या यूँ कहे हमारे दिल को पत्थर कर
देती है इत्यादि ...
निष्कर्ष
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें