ख़ुशी क्या है
ख़ुशी
क्या है...?
और क्या हम सदा खुश रह
सकते है..?
जैसे प्रश्नों का हल ही ढूंढने का
प्रयास हम इस ब्लॉग में करेंगे ...
तो आइये हम समझने का
प्रयास करते है कि ख़ुशी क्या है ..?
ख़ुशी, उल्लास है ,आश और विश्वास की मंजील है , हमारे द्वारा किये गये किसी भी प्रकार के कार्य की चरम सीमा है,मनोवल में वृद्धि का क्षणिक प्रलोभन है या सकारात्मक विचारों की उपज है इत्यादि
क्या
कभी हमने सोचा है कि ख़ुशी, हमारे जीवन को कितना प्रभावित करती है और ख़ुशी का अनुभव
हमें कब होता है |
तो
आइये ख़ुशी को समझने के लिए हम ख़ुशी रूपी अहसास की नींव की ओर चलते है जो हमको ख़ुशी
का बोध कराने में सहायक की भूमिका निभाती है –
·
जब हमको किसी काम को करते समय मजा आने लगे तो ख़ुशी का अहसास होता
है
·
जब हम अपनी मेहनत का प्रतिफल प्राप्त करते है तो ख़ुशी का अहसास
होता है
·
अचानक से किसी परचित से भेंट हो जाये तो हमें ख़ुशी का अहसास होता
है
·
जब हम सपरिवार मिल – जुल कर रहने लगते है तो ख़ुशी का अहसास होता है
·
हमारे मन के मुताबिक कोई क्रिया हो जाती है तब ख़ुशी का अहसास होता
है
·
हमारा अनुमान जब सही साबित होता है तब ख़ुशी का अहसास होता है
·
जब कभी हमको उम्मीद से बेहतर परिणाम मिलता है तब ख़ुशी का अहसास
होता है ऐसे और भी अनेकों बिन्दु हो सकते है जो हमें ख़ुशी का बोध करा सकते है ..
लेकिन इस
प्रकार के जितने भी बिन्दु होंगे जो ख़ुशी की नींव डालती नजर आती होगी वो सब के सब
क्षणिक ही होंगें इसमें से कोई भी निरन्तर ख़ुशी का बोध नहीं करा सकती है ...
तो
प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या करें जिससे ख़ुशी रूपी उत्साह बर्धक प्रकृति के नूर का
हम निरन्तर साक्षात्कार करते रहे .... या ऐसी कौन सी विचारधारा है जो हमें खुश रखने
में मददगार सावित हो सकती है .....
तो
आइये हम अपने अंदर उठते इस जिज्ञासा पर भी विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से प्रकाश
डालने की सार्थक कोशिश करते है ...
कहते है
हमारा मस्तिस्क दो तरह के विचारों को उत्पन्न करने की कला से परिपूर्ण होता है एक
नकारत्मक विचार और दुसरा सकारात्मक विचार लेकिन हम यहाँ नकारत्मक विचार की बात
बिल्कुल भी नहीं करेंगे क्योंकि हम ख़ुशी की नींव को ढूंढने की कोशिश कर रहे है ...
तो
सकारत्मक विचार पर विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण डालने से पहले हम ये समझने की कोशिश
करते है कि सकारत्मक विचार होता क्या है ....
तो जब भी
हम किसी काम को देखकर उस काम को कर लेने का या हम इसको पूरा क्यों नहीं कर सकते है
जैसे विचारों का बोध होने लगे तो इस विचार को ही हम सकारत्मक विचार कहते है
एक उदाहरण
से हम इसको और अच्छी तरह से समझ सकते है ...
जैसे एक
बच्चा जब चलना सीख रहा होता है तो ना जाने कितनी बार गिरता है कितनीं बार सम्भलता
है कितनी बार चोटे भी खाता है लेकिन क्या वो चलना छोड़ देता है नहीं ना क्योंकि
उसके मन मस्तिस्क में कोई विचार ही नहीं होता है लेकिन वो आप ही सकारत्मक विचारों
से भरे होने का प्रमाण अपने हर कृत्य से प्रस्तुत करता रहता है नकारत्मक उर्जा तो
हमारे भीतर इस दुनिया की आवोहवा से या आस – पास के माहौल से हमारे भीतर रच बस जाता
है |
खैर जब हम
सकारत्मक विचारों से भरे होते है प्रफ्फुलित रहते है उर्जावान रहते है उल्लास से
भरे रहते है और जब हम प्रफ्फुलित होंगे, उर्जावान होंगें तो ख़ुशी रूपी बूंदें आप
ही बरसने लगेगी जो हमारे मन को निश्छल ,पवित्र और सद्गुणी आप ही कर देगी ... और
इतना ही नहीं सकारत्मक विचारों से जो ख़ुशी हमें प्राप्त होती है उस ख़ुशी को पाकर
हम इतराते भी नहीं है शान्त चित ही रहते है
इसको
भी हम एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है ....
जैसे कोई
इंसान थोड़ी सी ख़ुशी पाकर ही पागल हो जाता है लेकिन कोई इंसान पर इसका कोई प्रभाव
ही नहीं पड़ता है|
इसे भी हम एक उदाहरण से समझने का
प्रयास करते है -
दो दोस्त
थे जिसमें से एक ने पास अंकों के साथ IT की डिग्री प्राप्त की थी और एक ने बहुत
अच्छे अंकों के साथ IT की डिग्री प्राप्त की थी लेकिन जिसने अच्छे अंकों के साथ IT
की डिग्री प्राप्त की थी वो सोच रहा था इससे भी अच्छे अंक प्राप्त कर सकता था
लेकिन एक दोस्त जिसने सिर्फ पास अंकों के साथ IT की डिग्री प्राप्त की थी वो तो
इतना से ही खुश था की चलों पास तो हो गया ..
अब आप
खुद ही अंदाजा लगा सकते है की सकारत्मक विचार हमें ना इतराने देती है और ना ही
हारने और इतना हीं नहीं जो सदैव ख़ुशी रूपी सागर में हमारे मन को डुबोये रखती है
...
तो
क्यूँ ना सकारत्मक विचारों को ही हम अपने मन मस्तिस्क में बसाने का प्रयास करें |
निष्कर्ष
सकारत्मक
विचार ही वो कुँजी है जो हमें असल जिन्दगी से रूबरू करा सकती है सदैव हमारे मन को
प्रफ्फुलित रख सकती है ख़ुशी रूपी मद का पान भी करा सकती है और कदम डगमगाने भी नहीं
देती है और तो और हमारे शरीर को भी कई रोगों से बचा शक्ति है जिसका श्रोत चिन्ता और
दुख से हो ..
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