#बच्चों का यादास्त कमजोर क्यों होता है ?#Why children have weak memory?#bchchon ka yadast kmjor kyon hota hai ?

 

अक्सर हमे बच्चों से ये शिकायत सुनने को मील ही जाती है कि

याद तो किया था लेकिन भूल गया या याद तो बहुत करता हूँ

लेकिन याद नहीं हुआ ...


ऐसी शिकायत हमें बच्चों से क्यों सुनने को मिलती है क्या कभी हमने इसपर विचार करके देखा है .अक्सर हम अपने अन्दर उठ रहे इन सब सवालों पर विचार करने के बजाए हम बच्चों पर ही इसका

सारा का सारा दोष मढ़ देते है ये कहकर की तुम पढ़ाई ही नहीं करते ,तुम्हारा ध्यान तो हर बक्त खेल कूद में ही लगा रहता है इत्यादि ...

 

तो आइये हम समझने की कोशिश करते है कि बच्चों से हमें इसतरह की शिकायत क्यों सुनने को मिलती है ........

 

इस धरती पर जब कोई भी बच्चा जन्म लेता है जन्म से ही अपना प्रभाव दिखाने लगता है जिससे हम प्रकृति के अदभुत संरचना का साक्षात्कार कर पाते है और जब साक्षात्कार हो जाता है तो हम किसी निष्कर्ष पर पहुँचते है कि इस बच्चें को तो हम डॉक्टर बनायेंगे , इंजिनिअर बनायेंगे इत्यादि.......

बच्चों पर दवाब बनने का ये भी एक कारण हो सकता है जिससे उनकी एकाग्रता में कमी आ सकती है जिससे उनकी यादास्त कमजोर हो सकती है या हो जाती है ...

लेकिन मैं इन सब बातों को दोहरा कर अपना और इस ब्लॉग को पढने वाले का समय बर्बाद ना करते हुए अपने विचारों के जरिए कुछ नई बात बताने की कोशिश करता हूँ जिससे बच्चों को अपनी पाठ याद करने में मदद मिल सकें .......

याद ना होने या यादास्त कमजोर होने के प्रमुख कारणों में, मैं किसी विटामिन्स की कमी की बात नहीं करने वाला क्योंकि इस पर अनेकों ब्लॉग पहले भी बन चूके है और आगे भी बनते रहेंगें क्योंकि अपनी जगह वो लोग भी सही है जो इस तरह के ब्लॉग को लिखते है ...

  

याद ना होने या यादास्त कमजोर होने के प्रमुख कारणों में, मैं किसी चिन्हित कसरत के बारे में भी बात नहीं करने वाला क्योंकि इस पर भी अनेकों ब्लॉग पहले भी बन चूके है और आगे भी बनते रहेंगें

 

मेरी समझ से बच्चों में याद करने या याद रहने को लेकर जो

समस्या उत्पन्न होती है उसके प्रमुख बिन्दु इस प्राकर है जिनकी

कमी के कारण इन सब समस्याओं का सृजन होता है ---

Ø  प्रेरणा

Ø  उद्देश्य

Ø  विषय वस्तु से लगाव

Ø  उचित समय का  निर्धारण

Ø  सोचने समझने का दायरा

आइये अब एक – एक कर प्रत्येक बिन्दुओं को विश्लेषणात्मक दृष्टीकोण से समझने का

प्रयास करते है-

प्रेरणा

प्रेरणा की कमी के कारण भी हम कई बार मंजील पर पहुँचते – पहुँचते ही हार मान लेते है या मुझसे ये सब नहीं होगा या मैं ये सब कर ही नहीं सकता....ये सब तो वो लोग कर सकते है जिनकी परवरिस इन सब माहौल में हुई होगी ....इत्यादि  

जैसे उदाहरण प्रेरणा की कमी होने के संकेत को उजागर करती है इसीलिए अपने प्रेरणा के श्रोत को ढूँढना चाहिए वो श्रोत कोई भी हो सकता है या कुछ भी हो सकता है जो हमारे द्वारा किये जाने वाले किसी भी कार्य पद्धति की नींव को उसके मंजील तक पहुँचाने में मदद करती है 

उदाहरण के तौर पर हम अपने पिता को ही प्रेरणा श्रोत मानकर अपनी कार्यप्रणाली में एक उन्माद ला सकते है |

 

उद्देश्य

उद्देश्य भी होना जरूरी है क्योंकि बिना उद्देश्य जीना मृत्यु से भी ज्यादा भयावह है और जितना अच्छा हमारा उद्देश्य होगा उतना ही हमारे भीतर उर्जा का संचार होगा जिससे हमारे द्वारा किये जाने वाले किसी भी तरह के काम में रोमांच बना रहेगा ....

 

विषय वस्तु से लगाव

किसी भी विषय वस्तु से जब तक हमें जुड़े हुए होने का बोध नहीं होगा तब तक उस विषय वस्तु का अध्यन हम मन लगाकर नहीं कर सकते है और जब मन लगाकर अध्यन ही नहीं करेंगे तो याद कहाँ से रहेगा ....

अब प्रश्न उठता है कि हमें उस विषय वस्तु से लगाव कैसे होगा ....

तो सबसे पहले हमे कोशिश करनी चाहिए कि उस विषय वस्तु के मजेदार पहलू को ढूढ़-ढूढ़ कर चिन्हित करलें  और उसको निरन्तर पढ़ने का  प्रयास करें जिससे हमारे भीतर उस विषय वस्तु के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होने लगेगा और मन अपने आप ही लगने लगेगा जिससे याद करने जैसी समस्या का निदान आप ही हो जाएगा | लेकिन इसमें अध्यन करते रहना आवश्यक है|

 

 

उचित समय का निर्धारण

समय का एक अपना ही महत्व है किसी भी काम में हमें तब तक लगे रहना चाहिए जब तक जो हम करना चाह रहे है कर ना लें या जो सीखना चाह रहें है सीख ना लें ...और जब तक सीख ना लें तब तक समय का निर्धारण तो बिल्कुल भी ना करें , हाँ सीखने के बाद समय को धीरे – धीरे कम करने का प्रयास करें जिससे दिन प्रति दिन समय के महत्व को समझने निपुणता आती जाएगी ...

 

सबसे अहम और अंतिम बिन्दु- सोचने समझने का दायरा

 

अब सोचने समझने के दायरें को हम एक उदाहरण के रूप में समझ सकते है

जैसे कोई शिक्षक बार – बार किसी बात को समझाने की कोशिश करता है लेकिन हम समझ ही नहीं पाते और जब हम समझ ही नहीं पाते है तो शिक्षक द्वारा लाख पूछने पर भी -की समझे या नही समझे  हम कुछ बोल ही नहीं पाते है  तो शिक्षक को ये अंदाजा लगाते देर नहीं लगती की इस बच्चें की सोचने समझने की शक्ति बहुत ही कमजोर है ...

अब सोचने समझने की शक्ति का विकास कैसे होगा ..?

तो इस बिन्दु को भी हम एक उदाहरण से समझने की ही कोशिश करते है .....

जैसे खूंटे से बंधी हुई गाय कितना भी जोर लगाले वो अपने लगाम जीतना ही चक्कर लगा सकती है उससे अधिक एक पग भी नहीं जा सकती है ठीक उसी प्रकार हम भी उतना ही सोच या समझ सकते है जितना हमारे भीतर ज्ञान है हम अपने ज्ञान से जरा सा भी आगे ना तो सोच सकते है और ना ही समझ सकते है इसीलिए सदा अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए .....

और अध्यन से ही हम अपने ज्ञान के स्तर को निरन्तर बढ़ा सकते है , अध्यन बिना जीवन किसी काम का नहीं ....

निष्कर्ष

मेरी समझ से निरन्तर अध्यन ही वो कुँजी है जो बौद्धिक विकास करते हुए सफलता रूपी ताले को बार – बार खोल सकती है |और याद ना होने या याद ना रहने जैसी समस्या का हनन कर सकती है |

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